Monday 1 December 2014

हां, वो मेरी मां हैं

मटमैला सा पल्लू उसका, कपड़ों पर जमी धूल बहुत,
उलझे-उलझे से बाल उसके, पर बातें उसकी सुलझी-सुलझी,
बदन से महकती माटी की खुशबू, आंचल में ममता अपार,
पैरों में बिवाई गहरी उसके, पर दर्द का कोई ना अहसास उसे,
थक गई खेतों की पगडि़यां, ना मानी हार कभी उसने,
महकता है आज भी आंगन मेरा, सादगी और दुलार से उसके,
रोटी का स्वाद अलग, मीठी लगती वाणी उसकी,
डांट भी लगे प्यारी-प्यारी, पिटाई से ना कभी दर्द हुआ,
कह रही थी कुछ खामोशी से... ललसाई सी आंखें उसकी,
बोल रही थी फर-फर वो, जैसे पूछ रही थी वो हाल मेरा,
थका था मैं, हारा सा था मैं, जैसे अरसे से जगा था मैं,
नींद बहुत आई आंचल में उसके, भाग गई थकान सारी,
मिला शुकून अजीब सा मुझे, जैसे जीत लिया जग सारा मैंने,
राज है वो, “कली है वो, ममता की जैसे मूरत है वो,
कहानी अमिट है उसकी, “अमित है उसका प्यारा लाल”,
हां, वो कोई और नहीं, मां हैं मेरी, मां हैं मेरी। +Amit Saini