Wednesday 29 April 2015

खबरीलाल: लाडलों को न दें "मौत का सामान"!

खबरीलाल: लाडलों को न दें "मौत का सामान"!: -

छात्रों की मौत का कारण बन रहे दुपहिया वाहन! - सैंकड़ों छात्र-छात्राएं गंवा चुके हैं अपनी जिंदगी! अमित सैनी। अभिभावक अपने लाड़...

Monday 1 December 2014

हां, वो मेरी मां हैं

मटमैला सा पल्लू उसका, कपड़ों पर जमी धूल बहुत,
उलझे-उलझे से बाल उसके, पर बातें उसकी सुलझी-सुलझी,
बदन से महकती माटी की खुशबू, आंचल में ममता अपार,
पैरों में बिवाई गहरी उसके, पर दर्द का कोई ना अहसास उसे,
थक गई खेतों की पगडि़यां, ना मानी हार कभी उसने,
महकता है आज भी आंगन मेरा, सादगी और दुलार से उसके,
रोटी का स्वाद अलग, मीठी लगती वाणी उसकी,
डांट भी लगे प्यारी-प्यारी, पिटाई से ना कभी दर्द हुआ,
कह रही थी कुछ खामोशी से... ललसाई सी आंखें उसकी,
बोल रही थी फर-फर वो, जैसे पूछ रही थी वो हाल मेरा,
थका था मैं, हारा सा था मैं, जैसे अरसे से जगा था मैं,
नींद बहुत आई आंचल में उसके, भाग गई थकान सारी,
मिला शुकून अजीब सा मुझे, जैसे जीत लिया जग सारा मैंने,
राज है वो, “कली है वो, ममता की जैसे मूरत है वो,
कहानी अमिट है उसकी, “अमित है उसका प्यारा लाल”,
हां, वो कोई और नहीं, मां हैं मेरी, मां हैं मेरी। +Amit Saini 

Wednesday 23 July 2014

जिंदगी जैसे ठहर सी गई है...

जिंदगी मेरी जैसे ठहर सी गई है, दरिया के किसी ठहरे हुए पानी की तरह शून्य हो गई है। दिल-ओ-दिमाग में केवल एक ही ख्याल रहने लगा है। ना सोचने की समझ बाकी रह गई है और ना ही कुछ समझने की कोशिश कर पाता हूं। खुले आसमान में बिना बंदिशों के आजाद उड़ने वाले परिंदे के जैसे पंख कुदर गए हैं। कभी ऐसा लगता है कि मेरे साथ कुछ गलत हो रहा है। कोई गलत कर रहा है मेरे साथ तो कभी ऐसा प्रतीत होने लगता है कि जैसे मैं ही गलत हूं। मैं ही अपने और जिंदगी के साथ गलत कर रहा हूं। असमंजस में फंसा हूं। एक तरफ कुआं है तो दूसरी तरफ उससे भी गहरी खाई। कहां जाउं, क्या करूं...समझ नहीं आ रहा है।
जितना भी दूर जाने की कोशिश करता हूं, मैं अपने आपको उतना ही जिंदगी के नजदीक पाता हूं। चाहकर भी ना ही उसे छोड़ पा रहा हूं और ना ही उसे भूल पा रहा हूं। दर्द सिर्फ इतना ही नहीं है, नासूर तो जिंदगी की फितरत है। न तो जिंदगी मुझे अपनाने के लिए तैयार है, न ही मेरा बनने के लिए तैयार है और न ही मुझे दूर रहना चाहती...अजीब पेशोपेश में है जिंदगी भी और मैं भी।
सच बताउं तो अपनी ही उलझनों उलझकर रह गया हूं। काम में दिल नहीं लगता, भूख मर चुकी है, नींद आती नहीं और चैन-करार कहीं मिलता नहीं। बस, एक ही सवाल हर वक्त दिमाग में कौंधता रहता है कि आखिर जिंदगी मेरे साथ ऐसा क्यों कर रही हैं? आखिर मेरा गुनाह क्या है? अगर ऐसा ही रहा तो मैं जिंदगी को हासिल करने की आस में जिंदगी भर घुट-घुटकर मरता रहूंगा।
अब तो आलम ये है कि ना मैं मर पा रहा हूं और ना ही जी पा रहा हूं। जिंदगी गर मेरी हो जाए तो जैसे सारे जहां की खुशियां मेरे कदम चूमें और अगर दूर चली गई तो मैं सच में मिट्टी में मिल जाउंगा। उसकी ना ना के बीच में हां हां ने मझधार अटकाया हुआ है। इंकार के साथ उसकी नजदीकियों के अहसास ने मुझे हर पल उसका बनाया है, तभी तो कभी हां तो कभी ना के भंवर में फंसा हूं। नतीजन, शरीर के नाम पर धीरे-धीरे हड्डियों का ढ़ांचा रह जाएगा। हां, अगर जिंदगी बस एक बार कह दे कि मैं तेरी हूं और तेरी रहूंगी.....उलझन से निकल जाउंगा। चंद रोज में हर मंजिल के रास्तों को आसान कर दूंगा...वादा नहीं दावा है।

Thursday 12 June 2014

“अमित“ वो “अमिट“ कहानी बन!!

बयां ना हो जो चंद लफ्ज़ों में,
वो “अमिट“ कहानी बन,
रोक ना सके कोई चट्टान तुझे,
“अमित“ वो बहता पानी बन,
चलता चल तू बढ़ता चल,
"कदम ताल" तू करता चल,
“अस़फार“ तू किए जा,
“अदीब“ बन तू नसीब बन, 
मिलेंगे बहुत “अज़ाब“ तुझे,
उनकी तू परवाह ना कर,
छोड़ दे “झूठ“ का "अंजूमन",
सच का ऐसा अफसाना बन,
वो “अमिट“ कहानी बन तू,
“अमित“ वो “अमिट“ कहानी बन!!
.
.--Copy Right @ AMIT SAINI
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अमिट: कभी न मिटने वाला
कदम ताल: कदम से कदम मिलाकर चलना
अस़फार: यात्राएंे
अदीब: विद्वान
अज़ाब: पीड़ा, दंड़
अंजुमन: सभा

Wednesday 12 March 2014

जिंदगी में एक दिन 'जिदंगी' से मुलाकात हुई........

जिंदगी में एक दिन 'जिदंगी' से मुलाकात हुई,

साथ बैठे, चाय पी और कुछ बात हुई।

बोली जिंदगी, प्यार एक धोखा है, फरेब है,

हमने कहा, जिंदगी तू खुद एक धोखा है,

बेवफा है, कपटी है, एक छलावा है,

मुहब्बत बिन तू अधूरी है, बदरंग है, बेमिजाज है,

बीच मझधार में हर किसी को छोड़ जाती है,

मरने में बाद भी मुहब्बत ही साथ निभाती है,

चिढ़ गई जिंदगी, मुझसे रूठ गई जिंदगी,

कहने लगी, बकवास है, सब झूठ है,

प्यार में मरने वाले सबसे बड़ा बेवकूफ है,

इश्क में मिलती केवल रूसवाई है,

नींद चली जाती है, करार खो जाता है,

मर पाता है इंसान न चैन से जी पाता है,

खाता है ना पीता है, हरदम बैचेन सा रहता है,

जाते हुए कुछ इस तरह से मुस्कुराकर बोली 'जिंदगी',

महबूब को मत मान खुदा, इक दिन धोखा खाएगा,

समझ में आएगा जब तक, सब कुछ तेरा लुट जाएगा,

जख्म होगें इतने गहरे, कभी ना भर पाएंगे,

एक दिन तू ही कहेगा, जिंदगी तू जीती मैं हारा,

सच कहा था तूने, प्यार का दूसरा नाम ही बेवफाई है...........


Wednesday 5 March 2014

......खामोशी को मेरी कमजोरी ना समझ !


खामोशी को मेरी कमजोरी ना समझ,
"जलजला: हूं, हस्ती मिटाना जानता हूं !!

नरम तो केवल स्वभाव है हमारा,
"दहाड़ना" वरना बखूबी जानता हूं !!

झुका था "इबादत" में सिर उसकी,
भ्रम पालकर तू नादानी ना कर !!

गर मिला मौका तो बता दूंगा,
हर रिश्ता निभाना जानता हूं !!

प्यार में अपनी जान देना ही नहीं,
दुश्मनी में सिर कलम करना भी जानता हूं।।






Friday 28 February 2014

मैं और मेरी गर्लफ्रेंड: एक व्यंगात्मक कल्पना

एक दिन बैठे-बैठे दिल में ख्याल आया कि कोई गर्लफ्रेंड बनाऊं। इसके लिए मैंने अपने अनुभवी दोस्तों का सहारा लिया। पूछा कि यार गर्लफ्रेंड बनानी है, मुझे कुछ सुझाव दें कि कैसे और किसे बनाऊं। किसी ने कुछ तो किसी ने कुछ, एक से बढ़कर एक सुझाव दिए, लेकिन हर सुझाव मेरे सिर के उपर से उतर गया। एक अति अनुभवीशील दोस्त का आईडिया मुझे कुछ आसान लगा। उसने बताया कि किसी भी लड़की का मोबाइल नंबर हासिल करों और उसे फोन करके प्रपोज कर दो। ना कहेगी तो कम से कम उससे नजरें तो नहीं मिलानी पड़ेगी और अगर हां कर दी तो तुम्हारी बल्ले-बल्ले।

सुनियोजित तरिके से मैंने लड़की पटाओ अभियान शुरू कर दिया। एक दिन से सप्ताह, फिर महिना और तीन महीनें बीत गए, लेकिन मैं लड़की पटाने में नाकाम रहा। थक-हारकर फिर से मैं दोस्तों की शरण में गया और मदद मांगी।

इस बार उसी दोस्त ने मुझे देहरादून की रहने वाली एक लड़की का मोबाइल नंबर दिया। नंबर तो ले लिया, लेकिन कॉल करने की हिम्मत नहीं हुई। धीरे-धीरे सप्ताह गुजर गया, लेकिन मैं कॉल नहीं कर सका। आखिरकार एक दिन हिम्मत जुटाई और प्रश्न वाचक चिंहन (?) मैसेज के जरिए सेंट कर दिया। कुछ देर बाद रिप्लाई में डबल प्रश्न वाचक चिंहन मिला। रिप्लाई मिलने पर मुझ में हिम्मत और ताकत का संचार हुआ और मैंने लिख भेजा, “आई एम अमित एंड यू। फिर रिप्लाई में मुस्कान लिखा मिला।

बस फिर क्या था, परिवार में कौन-कौन है, तुम क्या करते हो आदि-आदि बातें होने लगी। मीठी और सुरीली आवाज सुनकर मैं मदहोश सा हो जाता था। सोचता था कि जिसकी इतनी अच्छी आवाज है तो वह कितनी सुंदर होगी। इन्हीं ख्यालों में गोता खाता रहा और दिल में उसे देखने की तमन्ना को बढ़ाता रहा।

एक दिन उसकी कॉल आई कि वह मुझसे मिलने आ रही है। दिल गार्डन-गार्डन हो गया। सज-धजकर तैयार हो गया और बस स्टेंड पर इंतजार करने लगा। एक-एक मिनट सदियों जैसी लग रही थी। इसी बीच मैसेज आया कि मैं पहुंचने वाली हूं।

बस रूकने के साथ ही मेरे दिल की धड़कन तेज होने लगी। बस रूकी और वह नीचे उतरी तो देखता ही रह गया। दिल के सारे अरमान जैसे मूसलाधार बारिश में धुल गए। बडे़-बड़े होंठ और रंग एकदम स्याह। बाॅडी के नाम पर हड्डियों के ढांचे में लिपटे काले रंग के कपड़े। मूंड एकदम खराब हो गया।



दोस्तों से मिलवाने के लिए मैंने पूरी तैयारी की हुई थी, लेकिन गर्लफ्रेंड का चेहरा उन्हें किस मुंह से दिखाता। सोचा इतनी दूर से आई है तो चाय-पानी तो बनता ही है। सो, मैंने चाय आदि पिलाई और बस में बैठाकर नो-दो-ग्यारह कर दिया। उस दिन मैंने सोच लिया कि बिना गर्लफेंड ही अच्छे।

मगर दोस्तों को अपनी गर्लफ्रेंड के साथ घूमते देख रहा नहीं गया और फिर से प्रयास शुरू कर दिया। फिर एक लड़की का नंबर लिया और भगवान से प्रार्थना करते हुए कि इस बार मेरे साथ धोखा मत करना, मैसेजिंग के बाद कॉल पर बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ। दोनों फोन पर ही साथ जीने-मरने की कसमें खाने लगे। इस बार मुझे लगा कि सच्ची मौहब्बत मिल गई है। मंजिल ज्यादा दूर नहीं, इससे पहले कोई ओर ले उड़े, गर्लफेंड को हासिल कर अभियान का दा-एंड कर देना चाहिए।

हमने मिलने का प्रोग्राम सैट किया और निश्चित तिथि एवं समय पर मैं बताएं गए स्थान पर पहुंच गया। जिस रेस्त्रां और टेबिल का नंबर बताया था, वहां लाईट पिंक कलर की ड्रेस में एक बेहद ही सुंदर और हाई प्रोफाइल लड़की बैठी हुई थी। मुझे लगा कि गलती से बैठ गई होगी, मेरी किस्मत में ऐसी गर्लफ्रेंड कहां। 

जब तक मेरी गर्लफ्रेंड नहीं आ जाती, तब तक कहीं ओर बैठ जाता हूं, यह सोचकर में पास वाली टेबिल पर बैठ गया। इसी बीच मैसेज आया, “जानू कहां हों। मैने रिप्लाई किया, “स्वीट हार्ट आपका वेट कर रहा हूं,” तो जवाब मिला कि मैं तो कब से आपका उसी टेबिल पर इंतजार कर रही हूं। ये मैसेज मिलते ही मैंने कॉल की तो उसी लड़की का मोबाइल बोल पड़ा।

मैं हैरान, परेशान के साथ-साथ बेहद खुश हुआ। पास पहुंचकर पूछा, “आर यू शिवानी?” उसने भी झट से कहा, “यश एडं यू? मैंने कहा, अमित!!!!! बस फिर क्या था वो मुझे ऐसे देखने लगी, जैसे मैंने उसका कुछ छिन लिया हो।

खैर थोड़ी देर बाद वह रिलेक्स हुई और पूछा कि क्या लोगे। मैंने कहा,  काफी । हम दोनों ने काफी गटकते हुए कुछ सामान्य तौर पर बातचीत हुई। काफी खत्म होते ही उसने कहा कि मुझे जल्दी जाना चाहिए, वरना मैं लेट हो जाउंगी। मेरे मना करने के बावजूद उसने बिल जमा किया और बाए बोलकर चली गई। मैं सोचता ही रह गया कि आखिर वह क्यों चली गई।

मैं भी वापस चल पड़ा। बीच रास्ते में मैसेज आया कि सारी। मैंने पूछा, किस लिए? रिप्लाई मिला, आई डांट लाईक यू। इस बार दिल पूरी तरह से टूट चुका था। कसम खा ली कि अब मैं किसी गर्लफेंड-वलफे्रंड के चक्कर में नहीं पडूगां।

लेकिन गर्लफेंड के मामले में बदकिस्मती जैसे लठ लिए मेरे पीछे ही पड़ी थी। करीब छह माह बाद मेरे मोबाइल पर एक अंजान लड़की की कॉल आई। नाम पूछा और बोली कि सारी रांग नंबर लग गया था। पूछने पर अपना नाम राबिया बताया। पहले सप्ताह भर में बामुश्किल एक-दो मिनट के लिए दो बार बात हो पाती थी, फिर धीरे-धीरे रोजाना का रूटीन बन गया।

करीब तीन माह बाद मैंने मिलने की इच्छा जताई तो जवाब मिला, “इंपोसिबल। कारण पूछने पर बताया कि वह घर से बाहर नहीं जाती और घर बुलाना नामुमकिन है।

वाह री मेरी किस्मत और गर्लफ्रेंड। हर बार हाथ में "बाबा जी का ठुल्लू"। भाड़ में जाएं किस्मत और गर्लफ्रेंड। मैं तो ठल्लू ही सही।(-Amit Saini)