Friday 28 February 2014

मैं और मेरी गर्लफ्रेंड: एक व्यंगात्मक कल्पना

एक दिन बैठे-बैठे दिल में ख्याल आया कि कोई गर्लफ्रेंड बनाऊं। इसके लिए मैंने अपने अनुभवी दोस्तों का सहारा लिया। पूछा कि यार गर्लफ्रेंड बनानी है, मुझे कुछ सुझाव दें कि कैसे और किसे बनाऊं। किसी ने कुछ तो किसी ने कुछ, एक से बढ़कर एक सुझाव दिए, लेकिन हर सुझाव मेरे सिर के उपर से उतर गया। एक अति अनुभवीशील दोस्त का आईडिया मुझे कुछ आसान लगा। उसने बताया कि किसी भी लड़की का मोबाइल नंबर हासिल करों और उसे फोन करके प्रपोज कर दो। ना कहेगी तो कम से कम उससे नजरें तो नहीं मिलानी पड़ेगी और अगर हां कर दी तो तुम्हारी बल्ले-बल्ले।

सुनियोजित तरिके से मैंने लड़की पटाओ अभियान शुरू कर दिया। एक दिन से सप्ताह, फिर महिना और तीन महीनें बीत गए, लेकिन मैं लड़की पटाने में नाकाम रहा। थक-हारकर फिर से मैं दोस्तों की शरण में गया और मदद मांगी।

इस बार उसी दोस्त ने मुझे देहरादून की रहने वाली एक लड़की का मोबाइल नंबर दिया। नंबर तो ले लिया, लेकिन कॉल करने की हिम्मत नहीं हुई। धीरे-धीरे सप्ताह गुजर गया, लेकिन मैं कॉल नहीं कर सका। आखिरकार एक दिन हिम्मत जुटाई और प्रश्न वाचक चिंहन (?) मैसेज के जरिए सेंट कर दिया। कुछ देर बाद रिप्लाई में डबल प्रश्न वाचक चिंहन मिला। रिप्लाई मिलने पर मुझ में हिम्मत और ताकत का संचार हुआ और मैंने लिख भेजा, “आई एम अमित एंड यू। फिर रिप्लाई में मुस्कान लिखा मिला।

बस फिर क्या था, परिवार में कौन-कौन है, तुम क्या करते हो आदि-आदि बातें होने लगी। मीठी और सुरीली आवाज सुनकर मैं मदहोश सा हो जाता था। सोचता था कि जिसकी इतनी अच्छी आवाज है तो वह कितनी सुंदर होगी। इन्हीं ख्यालों में गोता खाता रहा और दिल में उसे देखने की तमन्ना को बढ़ाता रहा।

एक दिन उसकी कॉल आई कि वह मुझसे मिलने आ रही है। दिल गार्डन-गार्डन हो गया। सज-धजकर तैयार हो गया और बस स्टेंड पर इंतजार करने लगा। एक-एक मिनट सदियों जैसी लग रही थी। इसी बीच मैसेज आया कि मैं पहुंचने वाली हूं।

बस रूकने के साथ ही मेरे दिल की धड़कन तेज होने लगी। बस रूकी और वह नीचे उतरी तो देखता ही रह गया। दिल के सारे अरमान जैसे मूसलाधार बारिश में धुल गए। बडे़-बड़े होंठ और रंग एकदम स्याह। बाॅडी के नाम पर हड्डियों के ढांचे में लिपटे काले रंग के कपड़े। मूंड एकदम खराब हो गया।



दोस्तों से मिलवाने के लिए मैंने पूरी तैयारी की हुई थी, लेकिन गर्लफ्रेंड का चेहरा उन्हें किस मुंह से दिखाता। सोचा इतनी दूर से आई है तो चाय-पानी तो बनता ही है। सो, मैंने चाय आदि पिलाई और बस में बैठाकर नो-दो-ग्यारह कर दिया। उस दिन मैंने सोच लिया कि बिना गर्लफेंड ही अच्छे।

मगर दोस्तों को अपनी गर्लफ्रेंड के साथ घूमते देख रहा नहीं गया और फिर से प्रयास शुरू कर दिया। फिर एक लड़की का नंबर लिया और भगवान से प्रार्थना करते हुए कि इस बार मेरे साथ धोखा मत करना, मैसेजिंग के बाद कॉल पर बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ। दोनों फोन पर ही साथ जीने-मरने की कसमें खाने लगे। इस बार मुझे लगा कि सच्ची मौहब्बत मिल गई है। मंजिल ज्यादा दूर नहीं, इससे पहले कोई ओर ले उड़े, गर्लफेंड को हासिल कर अभियान का दा-एंड कर देना चाहिए।

हमने मिलने का प्रोग्राम सैट किया और निश्चित तिथि एवं समय पर मैं बताएं गए स्थान पर पहुंच गया। जिस रेस्त्रां और टेबिल का नंबर बताया था, वहां लाईट पिंक कलर की ड्रेस में एक बेहद ही सुंदर और हाई प्रोफाइल लड़की बैठी हुई थी। मुझे लगा कि गलती से बैठ गई होगी, मेरी किस्मत में ऐसी गर्लफ्रेंड कहां। 

जब तक मेरी गर्लफ्रेंड नहीं आ जाती, तब तक कहीं ओर बैठ जाता हूं, यह सोचकर में पास वाली टेबिल पर बैठ गया। इसी बीच मैसेज आया, “जानू कहां हों। मैने रिप्लाई किया, “स्वीट हार्ट आपका वेट कर रहा हूं,” तो जवाब मिला कि मैं तो कब से आपका उसी टेबिल पर इंतजार कर रही हूं। ये मैसेज मिलते ही मैंने कॉल की तो उसी लड़की का मोबाइल बोल पड़ा।

मैं हैरान, परेशान के साथ-साथ बेहद खुश हुआ। पास पहुंचकर पूछा, “आर यू शिवानी?” उसने भी झट से कहा, “यश एडं यू? मैंने कहा, अमित!!!!! बस फिर क्या था वो मुझे ऐसे देखने लगी, जैसे मैंने उसका कुछ छिन लिया हो।

खैर थोड़ी देर बाद वह रिलेक्स हुई और पूछा कि क्या लोगे। मैंने कहा,  काफी । हम दोनों ने काफी गटकते हुए कुछ सामान्य तौर पर बातचीत हुई। काफी खत्म होते ही उसने कहा कि मुझे जल्दी जाना चाहिए, वरना मैं लेट हो जाउंगी। मेरे मना करने के बावजूद उसने बिल जमा किया और बाए बोलकर चली गई। मैं सोचता ही रह गया कि आखिर वह क्यों चली गई।

मैं भी वापस चल पड़ा। बीच रास्ते में मैसेज आया कि सारी। मैंने पूछा, किस लिए? रिप्लाई मिला, आई डांट लाईक यू। इस बार दिल पूरी तरह से टूट चुका था। कसम खा ली कि अब मैं किसी गर्लफेंड-वलफे्रंड के चक्कर में नहीं पडूगां।

लेकिन गर्लफेंड के मामले में बदकिस्मती जैसे लठ लिए मेरे पीछे ही पड़ी थी। करीब छह माह बाद मेरे मोबाइल पर एक अंजान लड़की की कॉल आई। नाम पूछा और बोली कि सारी रांग नंबर लग गया था। पूछने पर अपना नाम राबिया बताया। पहले सप्ताह भर में बामुश्किल एक-दो मिनट के लिए दो बार बात हो पाती थी, फिर धीरे-धीरे रोजाना का रूटीन बन गया।

करीब तीन माह बाद मैंने मिलने की इच्छा जताई तो जवाब मिला, “इंपोसिबल। कारण पूछने पर बताया कि वह घर से बाहर नहीं जाती और घर बुलाना नामुमकिन है।

वाह री मेरी किस्मत और गर्लफ्रेंड। हर बार हाथ में "बाबा जी का ठुल्लू"। भाड़ में जाएं किस्मत और गर्लफ्रेंड। मैं तो ठल्लू ही सही।(-Amit Saini)

Thursday 27 February 2014

बचपन में किताब में पढ़ा था, अब तक अमल करता हूं!

बचपन में किताब में पढ़ा था, अब तक अमल करता हूं कि......
धागा अगर टूट जाएं तो वह जुड़ता नहीं, अगर जुड़ता भी है तो उसमें गांठ आ जाती है। 
.
.
.
इसी तरह से दोस्ती और मौहब्बत में अगर एक बार दरार आ जाएं तो फिर पहले जैसे बात नहीं रह जाती।
.
.
.
इसी का एक पहलू है कि रस्सी को इतना मत खींचों की वह टूट जाएं। यानि अगर कोई आपको बेहद प्यार करता हो, मान-सम्मान और इज्जत देता हो तो उसका अनादर मत करों। उसे और उसकी भावना को समझों। जरूरी नहीं है कि आपको मान-सम्मान देने के पीछे कोई हित छिपा हो।
.
.
.
कोशिश करता हूं कि ईंट का जवाब पत्थर दे दूं अर्थात 20 फीसदी सत्कार करने वाले को मैं 100 फीसदी सम्मान दूं। (-Amit Saini)
.
.
.
.
.
दिल को अब किसी से कोई गिला नहीं,
मन से जो भी चाह वो मिला नहीं,
बदनसीबी कहूँ या वक्त की बेवफाई,
अँधेरे में एक दिया मिला पर वो भी जला नहीं !!! 

Tuesday 25 February 2014

मौत को बड़े करीब से देखा.....निकल भागे पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी


10 सितंबर 2013 (मंगलवार दोपहर) मौत को बड़े करीब से देखा। दंगे की आग में बवालियों द्वारा मुज़फ्फरनगर के न्याजूपुरा के जंगल में फसल को तहस-नहस करने की सूचना मिली थी। सैक्टर मजिस्टे्रट, सीओ और भारी पुलिस बल के साथ मैं अपने तीन अन्य साथियों के साथ अपने 'अमर उजाला' के लिए 'एक्सक्लूसिव न्यूज' को कवर करने चला गया। नजारा बेहद ही अजीब था। सैंकड़ों लोग फसल को नष्ट करने में लगे थे। कोई इंजिन तो कोई अन्य कृषि यंत्र को तोडऩे में जुटा था। कुछ लोग पहले ही कई इंजिन उखाड़ ले गए थे। साग-सब्जी को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया गया था। पुलिस टीम को देखकर बवाली भाग खड़े हुए, लेकिन दो को पकड़ लिया। हमने पड़ताल की तो पता लगा कि 8 इंजिन, 6 हैंडपंप समेत बहुत सा सामान लूट लिया गया हैं। ट्यूबवैलों के कोठरों और किसानों की झौपडिय़ों में आग लगा दी गई थी। 

......................और कितनी दूर है मौत के दूत


एक कोठरे से तो अभी तक भी धुआं निकल रहा था। रहा नहीं गया, टीम को पीछे छोड़कर मोबाइल से ही फोटों खींचने में जुट गया। एक के बाद एक बर्बादी और तबाही के निशां मिलते जा रहे थे और मैं साथियों के साथ आगे बढ़ता जा रहा था। इसी बीच बवालियों की भीड़ एकत्र होने लगी तो साथ गए पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी चुपचाप मुझे बताएं वहां से निकल भागे। सहारनपुर से विशेष कवरेज के लिए आए हमारे साथी विवेक जी भी उनके ही साथ थे। काफी रोकना चाहा, लेकिन खौफ और दहशत में वह सबकुछ भूल गए और हमें छोड़कर भाग निकले। उस वक्त मोबाइल नेटवर्क भी गायब हो गए थे, विवेक जी ने बहुत ट्राई किया, लेकिन हमें उनके वहां से जाने का जरा भी आभास नहीं हुआ। काफी देर बाद हमें मालूम हुआ कि सभी भाग निकले हैं। हमने चारों ओर नजरें दौड़ाई तो सहम गए। तीन ओर से बवालियों की करीब तीन हजार की भीड़ ने हमें घेर लिया था, जबकि पीछे की तरफ काली नदी थी। जिसे पार करना मुमकिन नहीं था। 

बलवाईयों द्वारा उखाड़ फेंका गया इंजिन


किसी के हाथ में तलवार तो किसी के हाथ में तमंचे नजर आ रहे थे। आंखों में उनकी केवल हमें अपनी मौत का मंजर नजर आ रहा था। फोन मिल नहीं रहा था और रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था। अक्लमंदी इसमें ही थी कि अपने आप को किसी तरह से छिपा लिया जाए। हम इधर-उधर खेतों में घुसकर छिप गए। मुंडी बाहर निकाल-निकालकर हम देखते रहे कि बवालियों की भीड़ कितनी दूर है। इसी समय मोबाइल में नेटवर्क आया तो पुलिस को सूचना। आईबीएन-७ के पत्रकार राजेश वर्मा की दंगे में मौत के बाद पत्रकारों की बवालियों के बीच फंसने की खबर पुलिस में हड़कंप मच गया। 

बलवाईयों द्वारा उखाड़ फेंका गया इंजिन


एसएसपी प्रवीण कुमार वायरलैस सैट पर चिल्लाए, कुछ भी हो, पत्रकारों को बचाओं। दौड़ते हुए कोतवाली इंस्पेक्टर सत्यपाल सिंह मसीहा बनकर फोर्स समेत पहुंचे। कुछ भीड़ पुलिस जीप का सायरन सुनकर छट गई थी, जबकि कुछ को इंस्पेक्टर ने दौड़ा दिया। कोतवाल के इशारें पर कई राउंड फायरिंग की गई तो भीड़ घरों और जंगलों में दुबकी। सांसे फूली हुई थी, दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। सोच रहा था कि हम भी कैसे इंसान है? जिनके खिलाफ हमारी कलम लिखते-लिखते टूट जाती हैं, आज उन्होंने ने ही हमारी जान बचाई। दूसरा पहलू यह भी था कि यह कैसी फोर्स जो हमें बीच मझधार में छोड़ गए।

बलवाईयों द्वारा उखाड़ फेंका गया इंजिन


फायरिंग करते हुए कोतवाल हमें सुरक्षित निकाल आए थे। अब चिर-परिचितों के फोन कॉल का दौर चला। कोई शुक्र मना रहा था तो कोई डांट-फटकार रहा था कि क्या जरूत थी वहां जाने की? घर गया तो पानी पीकर लेट गया और काफी देर तक लेटा रहा। शुक्र है, हम बच गए। श्रीप्रभु का लाख-लाख शुक्रिया अदा करता हूं।

याद आते हैं वो पल, याद आते हैं वो लम्हें,

याद आते हैं वो पल, याद आते हैं वो लम्हें,
साथ गुजारे वो दिन, वो रात और वो शाम,
तेरा हंसना-मुस्कुराना और तेरी डांट-डपट,
कहां चले गए हमें छोड़कर राजेश वर्मा तुम,
याद आता है तेरा वो हर जुमला, तकिया-कलाम,
कि जीना शेर की तरह है और मरना भी शेर की तरह।
-------------




ये फोटो उस नुमाईश की याद दिलाता है, जब हम साथ मिलकर नुमाईश पंडाल में आयोजित होने वाले कार्यक्रमों का लुफ्त उठाया करते थे।...........बोले तो फुल इंज्वाय।

मुजफ्फरनगर "सिटी हार्ट" शिव चौक।

मुजफ्फरनगर "सिटी हार्ट" शिव चौक।


सबसे व्यस्तम रहने वाला चौराहा। कफ्र्यू के दौरान का यह रात्रि चित्र देखकर आप खुद कल्पना कर सकते हैं कि जिले भर का कैसा माहौल रहा होगा? लोगों की दिनचर्या कैसी होगी? 

पुरानी यादें...............

पुरानी फोटो देख रहा था। होली पर्व के उस पल का इक फोटो सामने आ गया जब वर्तमान एसएसपी प्रवीण कुमार एवं अन्य अधिकारियों के साथ मैं और हमारे दिवंगत वरिष्ठ साथी राजेश वर्मा जी के साथ मस्ती में चूर थे। जमकर होली खेली थी हमने। सच, पहली मर्तबा इतना आनंद लिया था होली के रंगों को................बस यादें ही रह गई हैं। सोचता हूं तो आंखों से पानी बहने लगता है। वर्मा जी को सत्-सत् नमन।।


पुरानी यादें...............

अमर उजाला टीम:



संपादक महोदय श्री राजीव सिंह जी के साथ गु्रप फोटो। साथ में हैं मुजफ्फरनगर प्रभारी श्री कपिल कुमार, शामली इंचार्ज श्री रोहित अग्रवाल, खतौली इंचार्ज श्री जगेंद्र उज्जवल, हमारे साथी रणवीर सैनी, मदन बालियान, चरथावल से एडवोकेट संजय गर्ग, सुशील सिखेडा, नरेश और सुशील सैनी जानसठ आदि। इन सबके मध्य आपका अपना अमित सैनी। 

पुरानी यादें...............



यह तस्वीर उस समय की है, जब राहुल मित्तल जी ने Þइंडिया इकोज न्यूजÞ के नाम से मैगजीनअखबार लाच किया था। माननीय श्री उत्तम चंद्र शर्मा जी (संपादक, मुजफ्फरनगर बुलेटिन) को सम्मानित करते श्री राहुल मित्तल जी (एमडी भास्कर न्यूज) बराबर में श्री संतोष कुमार यादव जी (चेयरमैन, गाजियाबाद विकास प्राधिकरण एवं तत्कालीन डीएम मुजफ्फरनगर), तत्कालीन नगर पालिकाध्यक्ष कपिल देव अग्रवाल, बराबर में श्री देवराज पंवार (प्रमुख समाजसेवी), मेरे साथ है वरिष्ठ पत्रकार राकेश शर्मा और मुजफ्फरनगर दंगों में हम सबको अलविदा कह देने वाले आर्इबीएन-7 के वरिष्ठ पत्रकार स्वर्गीय श्री राजेश वर्मा जी।

कितने लोग जानते हैं कि मैं नहीं पीता या पीता हूं?

कितने लोग जानते हैं कि मैं नहीं पीता या पीता हूं? 
जो यह बात भली-भांति जानते हैं कि मैं नहीं पीता हूं तो इस फोटो को देखकर क्या कहेंगे?............... और जो नहीं जानते कि मैं पीता हूं या नहीं पीता तो वो क्या कहेंगे?
.
.
.
.
.
.


.
.
.
.
.
.
.
.

"हम अच्छे सही पर लोग ख़राब कहतें हैं,
इस देश का बिगड़ा हुआ हमें नवाब कहते हैं,
हम ऐसे बदनाम हुए इस शहर में,
कि पानी भी पिये तो लोग उसे शराब कहते हैं!!!!

प्यार उससे करो, जो तुम्हे प्यार करता है,

प्यार उससे करो, जो तुम्हे प्यार करता है,
उससे नहीं, जिससे तुम प्यार करते हो
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
नसीहत और सलाह दोनों है, बाकी आपकी मर्जी
क्योंकि
इस दुनिया में कदम मेरे मोहसीन जरा संभलकर रखना,
यहां नजरों से गिराने के लिए, पलकों पर बैठाया जाता है!!!!!!

इतना दर्द न दे मुझे, के बेदर्द न हो जाऊ,

इतना दर्द न दे मुझे, के बेदर्द न हो जाऊ,

है तेरी हर खबर, के फिर बेखबर न हो जाऊ,

उम्र ही गुज़र जाती है एतबार करने में,

फिर कैसे टूट के, अब मैं बेफिक्र हो जाऊ..

कल एक मित्र से बात हो रही थी..................

कल एक मित्र से बात हो रही थी। उसने कहा कि आप शायरी बहुत लिख रहे हैं आजकल और वो दिल को छू देने वाली। ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे हाल-ए-दिल बयां कर रहे हो। मैं बोला, शायरी दिमाग से नहीं दिल से लिखी जाती है, तो जाहिर है कि जो दिल में आया वो लिख दिया। वैसे भी दिमाग में तो पत्रकारिता के कीड़े हैं।

क्योंकि..............

कभी जज्बात तो कभी यादों को दफ़न करते हैं,
कभी आंसू तो कभी दर्द को पिया करते हैं,
मोहताज़ तो नहीं फिर भी,
हम आपके आने का इंतज़ार किया करते हैं !!!

थोड़ा समय निकालकर दिल की सुन लेता हूं तो मेरे मित्रों को दिक्कत होने लगती है। रही दिल को छूने की तो भई मेरी शायरी के आपके दिल को छूने से क्या होता है।

क्योंकि..............

अपने हिस्से की ज़िन्दगी तो हम जी चुके,
अब तो बस धडकनों का लिहाज़ करते हैं,
क्या कहें दुनिया वालों को जो,
आखिरी सांस पर भी ऐतराज़ करते हैं !!!

जिसे हद से ज्यादा प्यार करो वो प्यार की कदर नहीं कर पाता

जिसे हद से ज्यादा प्यार करो वो प्यार की कदर नहीं कर पाता प्यार की कदर उनसे पूंछो जिन्हें कोई प्यार नहीं करता...... . . . .

क्योंकि . . .


अपनी तो जिन्दगी की अजीब कहानी है, जिस चीज को चाहा वो ही बेगानी है, हँसते भी हैं तो दुनियाँ को दिखाने के लिए, वरना दुनियाँ डुब जाए आँखों में इतना पानी है..

दिल में आज फिर एक दर्द-ए-तूफान आया है,

दिल में आज फिर एक दर्द-ए-तूफान आया है,

बर्बाद-ए-इश्क का हर वो मंजर याद आया हैं,

कहते थे जो मुहब्बत की डगर को कांटों भरा,

महबूब के साथ अपने वो ख्याबों में आया हैं,

ना कर इतना जुल्म हम पर ऐ संगदिल सनम,

खुदा से पहले लबों पर मेरे तेरा नाम आया हैं।।