कल एक मित्र से बात हो रही थी। उसने कहा कि आप शायरी बहुत लिख रहे हैं आजकल और वो दिल को छू देने वाली। ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे हाल-ए-दिल बयां कर रहे हो। मैं बोला, शायरी दिमाग से नहीं दिल से लिखी जाती है, तो जाहिर है कि जो दिल में आया वो लिख दिया। वैसे भी दिमाग में तो पत्रकारिता के कीड़े हैं।
क्योंकि..............
कभी जज्बात तो कभी यादों को दफ़न करते हैं,
कभी आंसू तो कभी दर्द को पिया करते हैं,
मोहताज़ तो नहीं फिर भी,
हम आपके आने का इंतज़ार किया करते हैं !!!
थोड़ा समय निकालकर दिल की सुन लेता हूं तो मेरे मित्रों को दिक्कत होने लगती है। रही दिल को छूने की तो भई मेरी शायरी के आपके दिल को छूने से क्या होता है।
क्योंकि..............
अपने हिस्से की ज़िन्दगी तो हम जी चुके,
अब तो बस धडकनों का लिहाज़ करते हैं,
क्या कहें दुनिया वालों को जो,
आखिरी सांस पर भी ऐतराज़ करते हैं !!!
क्योंकि..............
कभी जज्बात तो कभी यादों को दफ़न करते हैं,
कभी आंसू तो कभी दर्द को पिया करते हैं,
मोहताज़ तो नहीं फिर भी,
हम आपके आने का इंतज़ार किया करते हैं !!!
थोड़ा समय निकालकर दिल की सुन लेता हूं तो मेरे मित्रों को दिक्कत होने लगती है। रही दिल को छूने की तो भई मेरी शायरी के आपके दिल को छूने से क्या होता है।
क्योंकि..............
अपने हिस्से की ज़िन्दगी तो हम जी चुके,
अब तो बस धडकनों का लिहाज़ करते हैं,
क्या कहें दुनिया वालों को जो,
आखिरी सांस पर भी ऐतराज़ करते हैं !!!
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