Tuesday, 25 February 2014

मौत को बड़े करीब से देखा.....निकल भागे पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी


10 सितंबर 2013 (मंगलवार दोपहर) मौत को बड़े करीब से देखा। दंगे की आग में बवालियों द्वारा मुज़फ्फरनगर के न्याजूपुरा के जंगल में फसल को तहस-नहस करने की सूचना मिली थी। सैक्टर मजिस्टे्रट, सीओ और भारी पुलिस बल के साथ मैं अपने तीन अन्य साथियों के साथ अपने 'अमर उजाला' के लिए 'एक्सक्लूसिव न्यूज' को कवर करने चला गया। नजारा बेहद ही अजीब था। सैंकड़ों लोग फसल को नष्ट करने में लगे थे। कोई इंजिन तो कोई अन्य कृषि यंत्र को तोडऩे में जुटा था। कुछ लोग पहले ही कई इंजिन उखाड़ ले गए थे। साग-सब्जी को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया गया था। पुलिस टीम को देखकर बवाली भाग खड़े हुए, लेकिन दो को पकड़ लिया। हमने पड़ताल की तो पता लगा कि 8 इंजिन, 6 हैंडपंप समेत बहुत सा सामान लूट लिया गया हैं। ट्यूबवैलों के कोठरों और किसानों की झौपडिय़ों में आग लगा दी गई थी। 

......................और कितनी दूर है मौत के दूत


एक कोठरे से तो अभी तक भी धुआं निकल रहा था। रहा नहीं गया, टीम को पीछे छोड़कर मोबाइल से ही फोटों खींचने में जुट गया। एक के बाद एक बर्बादी और तबाही के निशां मिलते जा रहे थे और मैं साथियों के साथ आगे बढ़ता जा रहा था। इसी बीच बवालियों की भीड़ एकत्र होने लगी तो साथ गए पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी चुपचाप मुझे बताएं वहां से निकल भागे। सहारनपुर से विशेष कवरेज के लिए आए हमारे साथी विवेक जी भी उनके ही साथ थे। काफी रोकना चाहा, लेकिन खौफ और दहशत में वह सबकुछ भूल गए और हमें छोड़कर भाग निकले। उस वक्त मोबाइल नेटवर्क भी गायब हो गए थे, विवेक जी ने बहुत ट्राई किया, लेकिन हमें उनके वहां से जाने का जरा भी आभास नहीं हुआ। काफी देर बाद हमें मालूम हुआ कि सभी भाग निकले हैं। हमने चारों ओर नजरें दौड़ाई तो सहम गए। तीन ओर से बवालियों की करीब तीन हजार की भीड़ ने हमें घेर लिया था, जबकि पीछे की तरफ काली नदी थी। जिसे पार करना मुमकिन नहीं था। 

बलवाईयों द्वारा उखाड़ फेंका गया इंजिन


किसी के हाथ में तलवार तो किसी के हाथ में तमंचे नजर आ रहे थे। आंखों में उनकी केवल हमें अपनी मौत का मंजर नजर आ रहा था। फोन मिल नहीं रहा था और रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था। अक्लमंदी इसमें ही थी कि अपने आप को किसी तरह से छिपा लिया जाए। हम इधर-उधर खेतों में घुसकर छिप गए। मुंडी बाहर निकाल-निकालकर हम देखते रहे कि बवालियों की भीड़ कितनी दूर है। इसी समय मोबाइल में नेटवर्क आया तो पुलिस को सूचना। आईबीएन-७ के पत्रकार राजेश वर्मा की दंगे में मौत के बाद पत्रकारों की बवालियों के बीच फंसने की खबर पुलिस में हड़कंप मच गया। 

बलवाईयों द्वारा उखाड़ फेंका गया इंजिन


एसएसपी प्रवीण कुमार वायरलैस सैट पर चिल्लाए, कुछ भी हो, पत्रकारों को बचाओं। दौड़ते हुए कोतवाली इंस्पेक्टर सत्यपाल सिंह मसीहा बनकर फोर्स समेत पहुंचे। कुछ भीड़ पुलिस जीप का सायरन सुनकर छट गई थी, जबकि कुछ को इंस्पेक्टर ने दौड़ा दिया। कोतवाल के इशारें पर कई राउंड फायरिंग की गई तो भीड़ घरों और जंगलों में दुबकी। सांसे फूली हुई थी, दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। सोच रहा था कि हम भी कैसे इंसान है? जिनके खिलाफ हमारी कलम लिखते-लिखते टूट जाती हैं, आज उन्होंने ने ही हमारी जान बचाई। दूसरा पहलू यह भी था कि यह कैसी फोर्स जो हमें बीच मझधार में छोड़ गए।

बलवाईयों द्वारा उखाड़ फेंका गया इंजिन


फायरिंग करते हुए कोतवाल हमें सुरक्षित निकाल आए थे। अब चिर-परिचितों के फोन कॉल का दौर चला। कोई शुक्र मना रहा था तो कोई डांट-फटकार रहा था कि क्या जरूत थी वहां जाने की? घर गया तो पानी पीकर लेट गया और काफी देर तक लेटा रहा। शुक्र है, हम बच गए। श्रीप्रभु का लाख-लाख शुक्रिया अदा करता हूं।

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